‌‌‌एक मेंढकों का राजा गंगदत्त रहते था। अब उसकी कूट नीति विफल हो गई है। Part - II

in #esteem6 years ago

‌‌‌सर्प बोला, तुम इस समय मेरे मित्र हो चुके हो। अत: तुम्हें मुझसे भयभीत नही होने चाहिए। मैं तुम्हारे कहे अनुसार ही मेंढकों को मारकर खा़ऊँगा।
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तो अब बिल से बाहर आ जाओ।
सर्प बिल से बाहर आ गया और उसने सर्वप्रथम गंगदत्त को आलिंगन किया। इस प्रकार उन दोनों में मित्रता हो गई। उसके बाद आगे-आगे गंगदत्त चला और उसके पीछे प्रियदर्शन चलने लगा।
कूप पर पहॅुचकर रहट के मार्ग से गंगदत्त के साथी ही प्रियदर्शन भी उस कूप में जा पहॅुचा। वहाँ पहॅुचकर गंगदत्त ने सर्प को उसका कोटर दिखा दिया। जब वह कोटर में सुरक्षित पहॅुच गया, तो उसने अपने शत्रु मेंढकों को उसे दिखा दिया।

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उस दिन से उस सर्प ने उन मेंढकों को खाना आरंभ किया और एक एक कर कुछ दिनों में सबाकेा ही खा गया। इस प्रकार जब मेंढकों को अभाव हो गया तो उसने गंगदत्त को बुलाकर कहा, मैंने आपके शत्रुओं का विनाश कर दिया है। अब मेरे भोजन के लिए कुछ नहीं है। आप मुझे यहाँ लाए है। अत: अब आप मेरे भोजन की व्यवस्था करिए।
आप मेरे मित्र है। आपने मेरा कार्य संपन्न कर दिया है। अत: अब आपसे प्रार्थना है। कि उस रहट के मार्ग से आप भीतर आए थे, उसी से बाहर निकलकर अपने पुराने बिल में चले जाएइ।
मित्र¡ यह बात तुमने सोच-विचार कर नही कही है। अब मैं वहॉ किस प्रकार जा सकता हॅू। इतने दिनों मे तो उस पर किसी अन्य ने अधिकार कर लिया होगा। मैं यही रहूँगा। अब अपने कुटुंब के लोगों में से ही तुम्हे एक-एक करके मुझे खाने के लिए देने होगा। यदि ऐसे नही करोगे तो मैं सबको मारकर खा जाऊँगा।
इससे तो गंगदत्त को चिंता होने लगी। वह सोचने लगा कि उसने यह क्या कर डाला ? क्यों वह इस सर्प को यहां लाया ? अब यदि इसे मना करता हॅू। तो यह सबको मारकर खा जाएगा। किसी ने ठीक ही कहा है कि जो व्यक्ति अपने से अधिक बलवान को मित्र बनाता है, वह अपने ही हाथ से विषपान करना है। इसमें संदेह नही।
अंत में उसे एक-एक कर अपने कुटुंब के व्यक्तियों को देना पड़ा। अवसर पाकर सर्प एक दो और को भी खा जाया करता था। इस प्रकार उसके कुटुंबीजनों को खाते हुए उस सर्प ने एक दिन गंगदत्ते के पुत्र यमुनादत्त का ही भोजन कर लिए। गंगदत्त को जब इसकी सूचना मिली तो वह जोर-जोर से विला करने लगा। जब वह किसी प्रकार शांत न हुआ तो उसकी पत्नी ने उसे फटकारते हुआ कहा, हे कुल का क्षय करने वाला। अब इस प्रकार रोने से क्या लाभ? अपने कुल को ते तुम नाश कर ही चुके हो। किंतु अब भी सयम है। अत: यदि चाहो तो अपने यहां से भागने और इसे मारने का उपाय कर सकते हो। इस व्यर्थ में रोने से काई कार्य सिद्ध नही होगा।
अंत मे जब केवल गगंदत्त ही रह गया तो उसे पास बुला कर सर्प ने कहा, गंगदत्त! मुझे बडी भूख लगी है। यहाँ खाने को कुछ भी नहीं है। तुम मुझे बुलाकर लाए थे, इसलिए मेरे खाने की व्यवस्था करो।
गंगदत्त बोला, मेरे रहते आपको किसी प्रकार की चिंता नही करनी चाहिए। यदि आप मुझे बाहर जोने की अनुमति दें तो मै अन्य स्थानों से मेंढको को यहॉ लाकर आपके भोजन की व्यवस्था कर सकता हॅू।
ठीक है ऐसा ही करो, सर्प ने कहा।
उसकी अनुमति पाकर मेंढक रहट पर चढ़कर अनके देवी देवताओं की मनौती मनाता हुआ कुएँ से बाहर आ गया। प्रियदर्शन उसके लौटने की आशा में वही उसकी प्रतीक्षा करता रहा।
जब गंगदत्त लौटकर नहीं आया तो प्रियदर्शन समीप ही रहने वाल गोह के पास और उसेस निती करने लगा कि वह किसी प्रकार बाहर जाकर गंगदत्त को ढूँढ़-ढाँढ़कर ले आए। उसने कहा कि उसे वह बता दे कि यदि मेंढक ने मिलें तो भी चिंता की बात नही, किंतु उसके बिना उसका यहाँ मन नहीं लग रहा है। वह धर्म को साक्षी बनाकर कह सकाता है। कि वह गंगदत्त का वध नही करेगा।

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गोह बाहर गई और निकट ही उसे गंगदत्त मिल भी गया। सके पास जाकर उसेने कहा, गंगदत्त¡ तुम्हार मित्र प्रियदर्शन तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है। उसेन धर्म को साक्षी मानकर कहा है। कि वह तुम्हारा किसी प्रकार भी बुरा नहीं करेगा। अत: शीध्र चलो।
गोह ही बात सुनकार गंगदत्त करने लगा, गोह! भूखा व्यक्ति कौन-सा पाप नहीं कर सकता। नीचे लोग तो स्वभावतया ही कठोर होते है। तुम जाकर उस प्रियदर्शन से कह देना कि एक बार कुएँ से निकल जाने के बाद गंगदत्त अब पुन: उस कूप में नहीं आएगा। और प्रियदर्शन कुएँ के कोटर में उसकी बाट करता है।

The serpent said, you are my friend at this time. So you should not be afraid of me. According to your words I will kill frogs and eat it.
So now come out of the bill.
The snake came out of the bill and he embraced the Gangadatta first. Thus, both of them became friendly. After that, he walked ahead and followed Priyadarshan.
Priyadarshan, along with Gangadatta's companion on the road to the well, will go in that well. There, Prakuchkar Gangadatta showed the snake his cotter. When he got safe in the quarters, he showed it to his enemy frogs.
From that day, the serpent started eating those frogs and ate one by one and sabakaya in a few days. Thus when the frogs lacked, he called the Gangadatta and said, "I have destroyed your enemies." Now there is nothing for my food. You brought me here So now you arrange my food.
You are my friend. You have completed my work. So now you have a prayer. That you had come in through the passage of that road, going out of it and going into its old bills.
Friends, this is not what you thought and thought about. How can I go now? In those days, someone else has had authority over it. I'll be the same. Now you have to give me one of your family members to eat one by one. If you do not do this then I will kill everyone and eat it.
This started worrying about Gangadutt. He started thinking that he did this? Why did he bring this snake here? Now if you refuse it. So it will kill everyone and eat it. Someone has rightly said that the person who makes a stronger person a friend than himself, he has to poison with his own hands. There is no doubt in it.
In the end, he had to give it to his family members one by one. After the opportunity, the serpent used to eat one or two more. Thus, the snake eating his family members, one day, made a meal of Gangadatta's son Yamunadutt. When Gangadatt received it, he began to make a vigorously villa. When he did not calm down, his wife reprimanded him, saying that he was the destroyer of the total. Now what is the benefit from crying like this? They have destroyed your entire house. But still there is power. Therefore, if you want, you can take the steps to escape from it and kill it. Crying in this vain will not prove any work
In the end, when only the wandering left was called, the serpent said to him, "Gangadatta!" I'm very hungry. There is nothing to eat here. You called me, so arrange for me food.
Gangadatta, I do not have any kind of worry about you. If you allow me to go out, I can arrange your food by bringing frogs from other places here.
Okay do that, the snake said.
After getting permission from him, the frog got on the ridge and came out of the well-lit well, celebrating the Goddess of the Gods. Priyadarshan kept waiting for him in the hope of returning to him.
When Gangadatta did not come back, Priyadarshan came closer to Velh Goh and started dating him to find that he went out of some way to find Gangadatta. He said that let him know that even if the frogs meet, it is not a matter of concern, but without them, he is not feeling here. He can say religion as a witness. That he will not kill the gangster.
Goh went out and got the ball rolling near him. He went near and said, Gangadatta Your friend Priyadarshan is waiting for you. His religion is said to be a witness. That he will not do any harm to you So, let's move forward.
Goah started listening to talk only, Goh! Who can not sin a hungry person? Below are people who are strictly temperamental. You go and tell that Priyadarshan that once you leave the well, Gangadatta will not come back in that coupe again. And Priyadarshan does it in the well of the well.

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(Deepak Kumar Ahlawat)

@ahlawat


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