Amar hutatma swami shradhanand 7

in #article6 years ago

Establishment of daughter school

One day when Munshiram ji came from Kachher, his daughter Ved Kumari Bhagati ran away and began to listen to the song- "Man Ray Christiana Bol, what would you look like?
Jesus is my Rama, my mother, Krishna Kanhaiya.
Munshiram was shocked that our religion in the schools of Christians
Poison is promoted and Christianity is promoted
is . On the second day, she married Arya Samaj, Jalandhar on Sunday
Proposed to open a school, which was agreed with all the consent
Happened . After this, the daughter in the townshahar and village-village of Punjab
The schools were trapped and the women's education revolution
Sree Ganesha happened. Today, the huge Arya girl in Jalandhar
The college was founded on this occasion.

Tantav Nataran and Munshiram's patience of death

Munshiram Ji had tremendous respect for Pt. Guru Dutt. They
He considered him a life of Arya Samaj. His scholarship, simplicity
And he was very impressed by the neutral behavior.
Arya Samaji was an enemy of Pt. Guru Dutt and was a critical critic. .
Pt
Gurudatta's famine death greatly distressed Munshiram ji
And they believed that this damage could not be met.
After this, the Arya idol of sacrifice, sacrifice, sacrifice
Musafir Ptikhram was murdered. Such as Munshiram ji
The right hand is broken. After this his sadhvi and patriarcha
His wife Shivdev died. At that time, Ved Kumari 10
Of the year, Hemant Kumari is 6 years old, Harishchandra is 4 years old and Indra
Was 2 years old. Now Munshiram, both the mother and father of these children.
And at that time his age was only 35 years.



पुत्री पाठशाला की स्थापना

एक दिन जब मुंशीराम जी कचहरी से आये तो उनकी पुत्री वेद कुमारी भागति भागती आई और गीत सुनने लगी- "मन रे ईसाईसा बोल, तेरा क्या लगेगा मोल ।
ईसा मेरा राम रसिया, ईसा मेरा कृष्ण कन्हैया ’’
मुंशीराम जी चौंक पड़े कि ईसाइयों के स्कूलों में हमारे धर्म
के विरूद्ध जहर उगला जाता है और ईसाई धर्म का प्रचार होता
है । दूसरे दिन उन्होंने रविवार को आर्य समाज, जालंधर में पुत्री
पाठशाला खोलने का प्रस्ताव रखा जो सर्व सम्मति से स्वीकृत
हुआ । इसके बाद पंजाब के शहरशहर और गांव-गांव में पुत्री
पाठशालाओं का जाल बिछ गया और स्त्री शिक्षा की क्रांति का
श्रीगणेश हुआ। आज जालंधर में जो विशाल आर्य कन्या
महाविद्यालय है उसकी स्थापना इसी अवसर पर हुई थी ।

मौत का ताण्डव नर्तन और मुंशीराम का धैर्य

मुंशीराम जी की पं. गुरुदत्त के प्रति अगाध श्रद्धा थी । वे
उन्हें आर्य समाज का प्राण मानते थे । उनकी विद्वत्ता, सरलता।
और निश्छल व्यवहार से उन्हें बहुत प्रभावित किया था ।मांसाहारी
आर्य समाजी पं. गुरुदत्त के शत्रु थे और कटु आलोचक थे । .
पं
गुरुदत्त की अकाल मृत्यु ने मुंशीराम जी को बहुत व्यथित किया
और उनकी मान्यता थी कि इस क्षति की पूर्ति नहीं हो सकती ।
इसके बाद निर्धकता, त्याग, बलिदान की प्रति मूर्ति आर्य
मुसाफिर पं. लेखराम की हत्या हो गई । जैसे कि मुंशीराम जी
का दायां हाथ टूट गया हो । इसके बाद उनकी साध्वी एवं पतिव्रता
पत्नी शिवदेवी का निधन हो गया । उस समय वेद कुमारी 10
वर्ष की, हेमन्त कुमारी 6 वर्ष की, हरिश्चन्द्र 4 वर्ष का और इन्द्र
2 वर्ष का था। अब मुंशीराम इन बच्चों के माँ और बाप दोनों।
थे और उस समय उनकी आयु केवल 35 वर्ष थी ।



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