दूध – एक धीमा जहर [खून की गंगा में तिरती मेरी किश्ती, प्रविष्टि – 15]
वैसे तो कोई मुफ्त में भी जहर नहीं पीना चाहता। लेकिन यह एक विडंबना ही है कि हम अपने भोजन पर होने वाले खर्च का एक-तिहाई से आधा हिस्सा तक दूध और उससे बने उत्पादों पर खर्च करते हैं!
दूध की अनुपयुक्तता का सिद्धांत
प्रत्येक प्रजाति की माँ का दूध अपने आप में अनन्य और अनोखा उत्पाद है। यह बात हम पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि दूध प्रजातिगत विशेष है अर्थात वो एक विशिष्ट प्रजाति के प्राणी हेतु कुदरत का एक कस्टम-डिज़ाइंड उत्पाद है। दूध की इस परिभाषा से यह अर्थ स्पष्ट हो जाता है कि किसी एक प्रजाति के प्राणी का दूध किसी भी अन्य प्रजाति के जीव के लिए अनुपयुक्त है। अन्य प्रजाति के प्राणियों द्वारा इसका उपभोग करने पर कई समस्याएँ पैदा होने का खतरा है।
दूध छुड़ाने (वीनिंग-ऑफ) का प्राकृतिक नियम
दूसरे, दूध हारमोंस से स्रावित एक मेटर्नल लेक्टेटिंग सीक्रीशन है, जो कि एक नवजात के जन्म के समय सभी स्तनपायी मादाओं (माताओं) के स्तन से उत्पन्न होता है। यह विशेषकर उस नवजात के लिए ही पैदा होता है, जिससे उस नवजात के जीवन का समुचित विकास हो पाए। और ये शुरुआत के कुछ ही दिनों के लिए उपलब्ध होता है। इसके बाद वह नवजात कुदरत के नियम के अनुसार अपना सामान्य भोजन ग्रहण करने और पचाने में सक्षम हो जाता है, अतः उसे अब माँ के दूध की आगे कोई आवश्यकता नहीं रह जाती। इस समयावधि के पूर्ण होने को वीनिंग-ऑफ पीरियड कहा जाता है, जब माँ अपने बच्चे को स्तनपान से छुड़ाकर सामान्य भोजन के लिए विवश करती है। इस मानक प्रक्रिया में किसी भी स्तनपायी प्राणी में कोई अपवाद नहीं है। मानव भी नहीं। हां, इतना ज़रूर है कि ये वीनिंग-ऑफ काल हर प्रजाति-विशेष का अलग-अलग निर्धारित है। लेकिन यह एक विडंबना ही है कि मानव कुदरत के इस अकाट्य सिद्धांत के खिलाफ जाने में अपने को अधिक समझदार और बलशाली मानने की भूल करता है। जाहिर है, किसी भी भूल का नतीजा सुखद तो नहीं हो सकता।
माँ के दूध की बेजोड़, अनन्य एवं आदर्श सरंचना
मानव प्रजाति के लिए निर्मित माँ के दूध में कुछ ऐसे तत्व हैं जो गाय के दूध में बिलकुल ही नहीं है। इसी प्रकार गाय के दूध में कुछ ऐसे तत्व हैं जो माँ के दूध में होते ही नहीं है। ऐसे विजातीय तत्व इंसान के भरण-पोषण के लिए अनावश्यक हैं। शेष आवश्यक तत्वों की उपलब्धता का अनुपात भी शिशु की वास्तविक आवश्यकता के अनुरूप नहीं होता जो आगे चल कर शिशु के शरीर को होने वाले अनेकों नुकसान के कारक होते हैं। माँ के दूध में पर्याप्त मात्रा में वसीय अम्ल होते हैं। इनमें मुख्य रूप से लिनोलेइक एसिड होता है जो हमारे तंत्रिका-तंत्र (nervous system) का पोषण करता है, जबकि गाय के दूध में यह अम्ल नाम मात्र भी नहीं होता।
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खून की गंगा में तिरती मेरी किश्ती में आगे पढ़ें, इसी श्रंखला का शेषांश अगली पोस्ट में।
धन्यवाद!
सस्नेह,
आशुतोष निरवद्याचारी
धन्यवाद आपका जो आपने इस विषय में जानकारी दी