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RE: सुख : स्वरूप और चिन्तन (भाग # १) | Happiness : Nature and Thought (Part # 1)
हालात के मारे लोगों की सेवा करके जो सुख मिलता है। उसका दुजा कोई सुख मुकाबला नहीं कर सकता।
हालात के मारे लोगों की सेवा करके जो सुख मिलता है। उसका दुजा कोई सुख मुकाबला नहीं कर सकता।