लड़का, दूकानदार और सीपियां।
एक लड़के की कहानी, जिसने सिपिंयो के बदले अपनी बहन को खिलौना खरीद कर दिया।
छह साल का एक लड़का अपनी बहन के साथ बाजार गया। अचानक उसने देखा की उसकी बहन खिलौनों की एक दुकान पर खड़ी होकर बड़ी ध्यान से कुछ देख रही थी। लड़के ने बहन से पूछा, तुम्हे क्या चाहिए? बहन ने एक गुड़िया की तरफ इशारा किया। लड़के ने गुड़िया उसे लेकर दे दी। बहन खुश थी। दुकानदार लड़के की समझदारी देख हैरान था।
लड़के ने दूकानदार से पूछा, इसकी कीमत कितनी है? दुकानदार बेहद सौम्य व्यक्ति था। उसने लड़के से कहा, ढेर सारा प्यार और स्नेह। तुम क्या कीमत देना चाहोगे? लड़के ने अपनी जेब से कुछ सीपियां निकली और दुकानदार को दे दी। दुकानदार ने सीपियों को गिनने के बाद लड़के की ओर देखा। क्या ये कम हैं? दुकानदार ने कहा, नहीं...नहीं...! ये तो गुड़िया की कीमत से बहुत ज्यादा हैं।
उसने चार सीपियां अपने पास रखी और बाकी लड़के को लौटा दी। दूकान में काम करने वाले एक नौकर ने हैरानी से मालिक से पूछा, आपने इतनी महंगी गुड़िया सर्फ चार सीपियों में दे दी। दुकानदार ने कहा, हमारे लिये ये सीपियां महज पत्थर हैं। पर उस लड़के के लिए बेहद कीमती हैं। इस उम्र में उसे पैसे की अहमियत पता नहीं, पर जब वह बड़ा होगा,तो जरूर पैसो का महत्व समझेगा।
तब उसे अहसास होगा की बचपन में उसने पैसो के बजाय कुछ कौड़ियौं से एक गुड़िया खरीदी थी। तब उसे मेरी याद आएगी और वह सोचेगा की दुनिया अच्छे लोगो से भरी पड़ी है। इससे उसके व्यवहार में सकारात्मकता आएगी और वह भी नेकी करने के लिए प्रेरित होगा। कई बार हमें समझ भी नहीं आता की किन रूपो में हमारा व्यवहार हमें भविस्य में प्रभावित करता है। नौकर अपने मालिक की बात अब पूरी तरह समझ चुका था।
अच्छाई से अच्छाई फैलती है और बुराई से बुराई का प्रसार होता है।
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