जिनवाणी : जीवन और आचरण -- भाग #१
जीवन और आचरण
जीवन हमारा है ।
किन्तु हम कभी इस सुंदर, अमूल्य सत्य का साक्षात्कार करते ही नहीं ।
हम तो यही सोचते रहते हैं – यह घर हमारा है । यह धन हमारा है, यह तन हमारा है । हम इस घर को तिमंजिला बनाएगे और अधिक लम्बा-चौड़ा फैलाएंगे, चाहे उसके लिए पड़ोसी की जमीन हड़पनी पड़ जाए । हम अपने धन को दुगुना-चौगुना, हजार गुना बढाएंगे – चाहे उसके लिए कितने ही निर्धनों को भूखा मारना पड़े । हम अपने तन को सुंदर बनाएंगे । क्रीम लगाएंगे, नए फैशन के बाल कटाएंगे, पाउडर लिपस्टिक पोतेगें – चाहे उससे हमारा स्वास्थ्य चौपट हो जाए ।
हम यह सब करेंगे, केवल यह विचार कभी नहीं करेंगे कि जीवन हमारा है ।
इतना मूल्यवान जीवन, ऐसा देव-दुर्लभ मानव-भव क्षण-क्षण व्यर्थ चला जा रहा है और हम अज्ञान की काली, गहरी निद्रा में सोए पड़े है ।
क्षण-मात्र का भी विलम्ब किए बिना हमें जागृत हो जाना चाहिए और खूब अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि अपने इस जीवन का निर्माण भी हम ही कर सकते हैं और विनाश भी । किसी अन्य को कोई दोष देना निरर्थक है । हां, हमारे जीवन-निर्वाण में सहायक हो सकते हैं – देव, गुरु, धर्म ।
किन्तु मूल में पुरषार्थ तो हमें ही करना होगा । देव-गुरु-धर्म हमें मार्ग बताते हैं । लेकिन उस मार्ग पर चलना तो हमें ही है । देव, गुरु, धर्म हमारे मार्ग पर, अज्ञान के अंधकार से भरे हुए, हमारे मार्ग पर ज्ञान का दीपक धरकर उसे प्रकाशित कर देते हैं । अब उस प्रकाश से आलोकित पथ पर दृढ़ता-पूर्वक कदम तो हमें ही बढ़ाने हैं न ?
धर्मशास्त्रों में कहा गया है –
काम भोगों में लिप्त रहने वाले प्राणी को कभी सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती । तप के धनी, काम भोगों से विरक्त, शील गुण से सम्पन्न साधुजन ही शक्ति और सुख प्राप्त कर सकते हैं ।
जीवन को सदाचरण के मार्ग पर आगे बढ़कर उत्कृष्ट बनाने में सत्संगति बहुत सहायक सिद्ध होती है । संगति का प्रभाव सभी पर अवश्यमेव पड़ता है । मानव जैसी संगति में रहता है, वैसा ही उसका जीवन भी बन जाता है । यदि बाल्यकाल में बालकों को, यौवन काल में युवकों को अच्छी संगति मिले तो अवश्य ही वे सदाचरण के शुभ मार्ग पर ही चलेंगे तथा वें विनाश से बचे रहेंगे । किन्तु यदि इसके विपरीत वे कुसंगति में पड़ गए तो चाहे जैसे उत्तम कुल में वे जन्मे हों, उन पर कुसंगति का विनाशकारी प्रभाव अवश्य पड़ेगा और उनका जीवन नष्ट हो जाएगा । कुसंगति को इसलिए काजल की कोठारी कहा गया है । ऐसी काजल की कोठारी में जो भी व्यक्ति जाएगा वह एक-न-एक काजल की काली रेख तो लगवाकर ही आएगा, फिर वह चाहे जितना चतुर हो –
अत: --
भले ही विद्यावान हो, किन्तु यदि व्यक्ति दुर्जन हो तो उसकी संगति कभी नहीं करनी चाहिए, उससे तो दूर से ही नमस्कार करना ही भला ।
अतएव सदाचार को जीवन-निर्माण का सोपान मानकर चलना चाहिए । सदाचार की सीढियाँ चढ़ते जाइए, आप जीवन की उत्कृष्टता के शीर्ष पर अवश्य पहुँच जाएंगे । इसके विपरीत दुराचरण के गर्त्त में उतरिए, आपका जीवन रसातल में आपको पहुंचा ही देगा ।
चुनाव आपको और हमको ही करना है ।
परम् तीर्थंकर प्रभु ने फरमाया है –
निग्रंथ जो हैं, वे मैथुन का वर्जन करते हैं, क्योंकि मैथुन महादोष है, विनाश को आमंत्रण देने वाला है । इन्द्रियों का असंयम अधर्म का मूल है । अब्रह्मचर्य दोषों का समुदाय है । अत: जीवन-निर्माण के इच्छुक साधक को अब्रह्मचर्य का परित्याग करना चाहिए ।
ब्रह्मचर्य का पालन कैसे हो ? संयम के आश्रय से । संयमी जीवन व्यतीत करने से ही ब्रह्मचर्य का पालन किया जा सकता है । मन में किसी भी प्रकार का विकार आने ही नहीं देना चाहिए । चरित्र दे पावन प्रासाद को खड़ा करने के लिए संयम की आधारशिला को स्थापित करना अनिवार्य है ।
आज के लिए यही समाप्त कर, अगली पोस्ट में आगे बढ़ेगे और जीवन और आचरण के बारे में जानेगें ।
जीवन अनमोल है।
Its true. No one can change it.
Mehta ji a jiban to hamara hain lakin kiya pata pichle janam main hamara jiban hamara rahaga ki nhi
@mehta ji it is intellectually peaceful to read your blog.
मनुष्य जीवन सुंदर है, दुर्लभ है और अनेक संभावनाओं से ओत-प्रोत है। कहा जाता है कि मनुष्य एक भटका हुआ देवता है। अगर हम प्राकृतिक रूप से जीवन जियें। जिओ और जीने दो के विचार पर अमल करें तो हमें "मनुष्य" बनने के लिए जंगलों की तरफ नही जाना पड़ेगा। हम लोगों के बीच मे ही रहकर एक उत्कृष्ट जीवन जी सकते हैं।
महापुरुषों ने हमें काफी कुछ सिखाया है लेकिन हम अज्ञानी मनुष्य नही सीखते। अगर सीखते हैं तो अमल नही करते।
kya batt boli sarji i am impersd i like you
sarji hindi me keyse taip hota he ham bhi kar skte he kya batao place
Wow @mehta sir बहुत अच्छे लगते हैं जब हम आपके आर्टिकल पोढता हू,, Ajj अपने जीवन और आचरण के बारेमे बहुत अच्छा बीसलेसान किया, app सही बोले हो, जिबन हमारे हाथ मे ही हे, हम अपने जीवन में सिर्फ खुदके लिए सोचते रहता हू,, जीवन का अर्थ अपने hume समझाया,, आचरण इंसान का पहचान, App अपनी जीवन काल में सबके साथ Kayse अचरण किया, एहि अपकी पहचान हे,, हमए तब bahut accha लगता है, जब हम अपके हिन्दी देख्ताहू,,, इसलिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद @mehta sir
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@mehta ji, Ati-Sunder sahib ur post like a e-book, u daily 1 artical post or i enjoy reading or adopt good-knowledge.All the best sir
हमारा जीवन व्यर्थ गुजरत।जा रहा है और हमें पता तक नही।हमे सदाचारी बनकके सयमी जीवन बीताना चाहिए।
बात तो बहुत सही लिखी है आपने लेकिन आजके समय मे कोई भी अमल नही करता। सबको बस दिखावे की जिंदगी जीनी है और बस पैसा कमाना है वो चाहे जैसे मिले। किसी को कोई फर्क नही पड़ता इन सब बातों का। सब अपनी संस्कृति को भूल चुके है।
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@mehta ji.... Sir aapki post se mera dil bahut khush ho jata hai.. Kyoki aapki post hindi me hoti hai aur Indian ki post hot list me dekker dil ko khushi milti hai..... Aap bahut accha work kr rhe hai... God bless you.. 😊
आप भी हिंदी में पोस्ट कर सकते है. आपको बस google का language tool download करना है. और बस फिर हिंदी में टाइप करिए.
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