क्षमा वीरस्य भूषणम् (अंतिम भाग # २) | Heroes Pride Forgiveness (Final Part # 2)
क्षमा वीरस्य भूषणम् (अंतिम भाग # २) | Heroes Pride Forgiveness (Final Part # 2)
भारत में तैंतीस करोड़ देवी-देवता माने जाते हैं । किन्तु केवल शंकर को ‘महादेव’ कहा जाता है । क्यों ?
एक बार जब समुंद्र-मन्थन हुआ । अमृत तथा विष दोनों ही उसमें से निकले । अमृत का पान करने के लिए तो सब प्रस्तुत हुए, किन्तु विष-पान कौन करे ? शंकर ने ही उस भयंकर विष को अपने कंठ में धारण किया । किसी ने कहा है –
इसी प्रकार वे मानव जो कटु वचन अथवा कटु व्यवहार रूपी विष को प्रसन्नता पूर्वक पी जाते हैं – इस विश्व में महान बन जाते है ।
जैसे पहले कहा था कि बैर से बैर शान्त नहीं होता । उससे तो वह बढ़ता ही है । वैरभाव को, शत्रुता को समाप्त करने का एकमात्र उपाय क्षमा ही है । महाभारत का दृष्टान्त इस कथन को स्पष्ट करता है –
युद्ध के अंतिम दिन, जब दुर्योधन अपने जीवन की अंतिम श्वास ले रहा था, अश्वत्थामा ने उससे पूछा – “आपके मन में क्या है ? आपकी यह दशा क्यों हो रही है ?” दुर्योधन ने उत्तर दिया – “मेरा जीवन दीपक बुझने ही वाला है, किन्तु मेरा जीव अपने स्थान पर नहीं जा रहा है । मुझे शांति नहीं मिल रही है । मुझे शांति तभी मिल सकती है जब मैं एक बार पांचो पाण्डवों के धड़ देख लूं ।”
दुर्योधन की इच्छा पूर्ति के लिए अश्वत्थामा ने अंधेरी रात्रि में चुपचाप पाण्डवों की छावनी में पहुंच कर पंच महापुरुषों के मस्तक काट डाले । रक्त से सने हुए उन पंच धड़ों को कपड़े में लपेट कर वह शीघ्रता से दुर्योधन के पास ले आया । दूर से देखकर दर्योधन प्रसन्न हुआ, किन्तु कपड़ा हटाकर देखने पर उसे निराशा हुई । वे पाण्डव नहीं, द्रौपदी के पुत्र थे । दुर्योधन का उनसे वैर नहीं था, वे तो उसी के पुत्र समान थे । उसका वैर तो पाण्डवों से था । अन्त में इसी शोक में उसकी मृत्यु हो गयी ।
इधर पाण्डवों की छावनी में हाहाकार मच गया । द्रौपदी करुण क्रंदन करने लगी । पाण्डवों के ह्रदय पर घोर आघात पहुंचा । द्रौपदी ने यह प्रतिज्ञा की कि यदि मैं अपने पुत्रों के हत्यारे का वध न करूँ तो स्वयं चिता में जल मरूंगी । भीम, अर्जुन तथा श्रीकृष्ण ने वध करने वाले की खोज की । अश्वत्थामा को पकड़ कर वे द्रौपदी के पास ले आये । भीम ने तलवार द्रौपदी को देते हुए कहा कि वह अपने पुत्रों के अधम हत्यारे का वध कर दे । पृथ्वी पर ऐसे नीच हत्यारे को रहने का अधिकार नहीं है ।
किन्तु द्रौपदी का मातृ-ह्रदय जागृत हो चूका था । उसने भीम से कहा – “आपने मेरे पुत्रों के हत्यारे को पकड़ कर लाकर अपने अनुकूल ही वीर-कर्म किया है । किन्तु इन्हें देखकर और इन्हें इस तलवार की तरफ देखते हुए देखकर मुझे इनकी माता ‘कृपी’ का ख्याल आता है । उसका तो कोई अपराध नहीं है । मैं उसे पुत्र-विहीन क्यों करूँ ? ... इन्हें मैं क्षमा करती हूं । छोड़ दीजिए इन्हें ।”
अश्वत्थामा लज्जा और पश्चात्ताप से पानी-पानी हो गया ।
द्रौपदी ने वैर से वैर को शान्त नहीं किया । वैर से क्या कभी उसका वैर शान्त हो सकता था ? उसने प्रेम और क्षमा से उसे सदा-सदा के लिए शान्त कर दिया ।
अस्तु, क्षमा एक महान तप है । उसके प्रभाव से प्राणी अपने जीवन को सन्मार्ग पर ले जाता है । भारत इस इतिहास ऐसे उत्कृष्ट उदाहरणों से भरा पड़ा है । महावीर भगवान को संगम देव ने छह मास तक घोर उपसर्ग दिया । किन्तु महावीर तो ‘महावीर’ थे । क्षमा उनका सबसे महान अस्त्र था । उसी अस्त्र से उन्होंने उस क्रोधी और भटके हुए देव को परास्त किया । वह देव उनके चरणों में पूजाभाव लिये हुए आया और उसे जीवन का सच्चा मार्ग मिला ।
इसलिए क्षमा से बड़ा कोई कोई तप नहीं है ।
The link of previous post of this topic is : https://steemit.com/life/@mehta/or-heroes-pride-forgiveness-part-1
The English translation of this post with the help of Google language tool as below:
Thirty-three million goddesses are considered in India. But only Shankar is called 'Mahadev'. Why?
Once when Samundra-Mandan happened. Both nectar and venom emerged from it. All of them came to drink the nectar, but who would poison? Shankar only put that poisonous poison in his throat. someone has said -
Likewise, humans who drink poisonous poisonous poisonous poisonous foods and drink well - become great in this world.
As previously said that the hindrance of hatred is not calm. It only increases from him. The only way to eliminate animosity is to forgive the enemy. The Mahabharata parable illustrates this statement -
On the last day of the war, when Duryodhana was taking the last breath of his life, Ashwaththama asked him - "What is in your mind? Why is this happening to you? "Duryodhana replied -" The lamp of my life is about to die, but my creature is not going to its place. I am not getting peace I can get peace only when I see the torso of five Pandavas once. "
To fulfill Duryodhana's wish, Ashwatthama cut the head of the five great men by arriving quietly in the camp of the Pandavas at dark night in the dark night. By wrapping those punching factions with blood in cloth, he hurriedly brought them to Duryodhana. Daryodhon was delighted to see from afar, but he was frustrated when he saw the cloth removed. He was the son of Draupadi, not Pandava. Duryodhana was not hostile to them, he was like his son. His hatred was from the Pandavas. In the end, he died in this tragedy.
There was a stroke in the camp of the Pandavas. Draupadi Karan started crying. The Pandavas had a great shock at the heart. Draupadi pledged that if I do not kill the murderers of my sons, they will get burnt in Chita itself. Bhima, Arjun and Shrikrishna discovered the murderer. He took Ashwaththama and brought him to Draupadi. Giving the sword to Draupadi, Bhima said that he slaughtered his sons' assassins. There is no right to such lowly killer on earth.
But Draupadi's maternal heart was awakened. He said to Bhima - "You have done a brave act by bringing the murderers of my sons. But seeing them and looking at them looking at this sword, I take care of their mother 'kupi'. There is no crime in him. Why should I do him sonless? ... I forgive them. Leave them. "
Ashwaththama became water-water with shame and repentance.
Draupadi did not restrain hostility from hostility. Could the hostility of hostile enemies ever be solved? He made peace for ever and ever by love and forgiveness.
Aunt, forgiveness is a great tenacity. With its influence, the creature takes the life on its way. India is full of such excellent examples of history. Sangam Dev gave a great prefix to Mahaveer Bhagwan for six months. But Mahavira was also 'Mahavir'. Forgiveness was their greatest weapon. With the same weapon, he defeated that grumpy and deviant deity. That god came worshiping at their feet and found the true path of life.
Therefore there is no penance greater than forgiveness.
क्षमाशीलता, वीरता की पहचान है । क्योंकि क्षमा करने के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है।
लेकिन मेरे विचार से क्षमा तब तक लाभप्रद है जब तक यह व्यक्तिगत हो। सार्वजनिक और राजनीतिक दृष्टि से हम अपराध करने वाले को तो क्षमा नहीं कर सकते।
आपके विचार उचित ही है. क्या सम्भव है क्या असंभव है इसमें नहीं पड़ेगे.
आपको पहले के समय के कई उदाहरण मिल जायेगे जब हमारे पूर्वजों ने सार्वजानिक और राजनीतिक दृष्टि से भी कइयो को क्षमा प्रदान की है.
सत्य कहा आपने हमारे इतिहास में जीवन को जीने का सन्मार्ग बहुत अच्छे से वर्णित किया है परंतु इसको इस विलासितापूर्ण जीवन में अपनाना बहुत की जटिल होता जा रहा है । इसके लिए बहुत ही कठिन परिश्रम की आवश्यकता है एवं अहंकार का त्याग जरुरी है ।
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बस हमें हमारी सोच बदलने की जरुरत है, कोई भी मुश्किल नहीं है.
सोच बदलो, सब ठीक हो जाएगा.
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Jay hind!!!!!!
Vande mataram!!!!!!
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@mehta
मैने अश्वत्थामा जी के बारे में कुछ रिसर्च की थी । उन्हें अलग - अलग समय मे अलग अलग जगह देखा गया है। क्योंकि उन्हे अमरत्त्व का वरदान प्राप्त था।
मेहता जी आपके क्या विचार है कि वह अभी भी जीवित है या नही।
मुझे तो नहीं पता की वे जीवित है या नहीं. परन्तु यह जरुर है ऐसा कहा जा रहा है तो हो सकता है कि वे जीवित हो.
बहुत उच्च कोटि की भावना होती हैं 'क्षमा' , आज के परिपेक्ष्य में तो अतिआवश्यक भी हैं। वैश्विक स्तर पर इस प्रकार के विचारो का प्रचार प्रसार प्राणिमात्र के कल्याण का आधार हो सकता हैं।
बहुत अच्छी पोस्ट है बहुत सारे नए चीज भी जानने को मिले है। सच में क्षमा से बढ़कर कोई और दूसरी चीज हो ही नहीं सकती।
अगर यह बात सब सोचने लगे तो फिर हिंसा का नामो निशान इस संसार से मिट जाएगा।
एक महात्मा रोज़ सुबह नदी के किनारे स्नान करने के लिए जाते थे , एक दिन वह अपने शिष्य के साथ गए , महात्मा जी ने स्नान शुरू किया , स्नान पूरा हो जाने के बाद उन्होंने सूर्य नमस्कार किया , फिर पूजा करने लगे , लेकिन तभी उनकी नजर नदी किनारे नदी में डूबे हुए एक जहरीले बिच्छू पर पड़ी , महात्मा जी तुरंत उठे और उन्होंने उस बिच्छू को नदी से बहार निकाला और फिरसे किनारे पर रख दिया , लेकिन नदी से निकालते वक़्त बिच्छू ने महात्मा को काट लिया , महात्मा जी जोर से चिल्लाये और दर्द से कराहने लगे , लेकिन फिरसे बिच्छू नदी में जा गिरा , महात्मा जी ने फिरसे बिच्छू को नदी में से निकाला और किनारे पर रख दिया , फिरसे बिच्छू ने डंक मारा , ऐसा कई बार हुआ , यह देख उनका शिष्य अचम्भे में पड़ गया , लेकिन एक बार बिच्छू किनारे से दूर चला गया , और उसकी जान बच गयी , तब उनके शिष्य ने महात्मा से पूछा के आपको इसने कई बार काटा , लेकिन फिर भी आपने अपने दर्द की परवाह नहीं की और इसे बचाया , तब महात्मा हस्ते हुए बोले , यह तो बिच्छू है इसका धर्म है के डंक मारना यह तो अपना धर्म निभा रहा था , और मेरा कर्त्तव्य बनता है के मैं इसे बचाऊं , क्यूंकि यह खुद नदी से निकलने में असमर्थ था , इसलिए मैंने भी अपना धर्म निभाया , तब उनके शिष्य ने महात्मा के चरण पकड़ लिए।
महात्मा जी ने बहुत ही सही काम किया.
बैर से बैर बढता हे और पियर से पियर बढता हे इस संसार में सन्जन व्यक्ति कभी क्रोधित नहीं होते सवेव प्रशन रहते हे और जो कोई भी उनसे ग्रिना क्रोध करता हे उसे भी वे माफ़ कर देते हे हम इस संसार को पियार और स्नेह ही जित सकते हे
ये दुनिया प्यार से ही चल सकती है. और क्रोध करके हम अपना दिमाग और सामने वाले का दिमाग भी ख़राब कर देते है. अत: इससे बचना चाहिए.
जी बिलकुल सही बात आपकी और सर जी मेने आपको मेरा facebook profile का लिंक दे रहा हु उमीद आप आप जरुर मुझे एक msg करोगे मुझे कुछ knowlage चाहिए आपसे की किस तरह के पोस्ट लिखू में और किस सब्जेक्ट पर जिस से मेरा steemit ब्लॉग ग्रो करे
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Mahabharat Ka kafi achha prasang Aapne yha Diya hai..
Dhynawad @mehta ji
Thanks @priyankar ji.