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RE: सुख : स्वरूप और चिन्तन (भाग # १) | Happiness : Nature and Thought (Part # 1)
इसलिए ही तो कहते है कि सुख और दुःख कुछ नहीं हमारे सोचने पर निर्भर है कि हम किसी भी चीज को कैसे लेते है. तो क्यों न उसी चीज में सुख का अनुभव किया जाए.