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RE: धर्म का प्राणतत्व : विनय (अन्तिम भाग # ३) [ The Life of Religion : Modesty (Final Part # 3)]
हमे अपने ज्ञान और कला पर गमंड नहीं करना चाहिए और नहीं कभी किसी का अपमान करना चाहिए हमे अपने ज्ञान और और कला का उपयोग हमेसा दुसरो को भले के लिए करना चाहिए और जीवन में कभी की अभिमान नहीं होना चाहिए अभिमान अंत की सुरुआत हे