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RE: धर्म का प्राणतत्व : विनय (अन्तिम भाग # ३) [ The Life of Religion : Modesty (Final Part # 3)]
हमे किसी भी काम को अपना कर्तब्य समझ कर करना चाहिए न कि उपकार समझ कर
जब हम उपकार समझकर काम करते है तो हमारी अपेक्षा दूसरों से बढ़ जाती.और जब अपेक्षा पूरी नहीं होती तो हमारे मन में उस इंसान के प्रति बिनम्रता खत्म हो जाती है.
@woodparker sahi hai......!