Live in Limits.....
उतने पांव पसारिये, जितनी लंबी सौर
। जितनी लंबी रजा़ई हो, उतने ही पाँव फैलाने चाहिएँ। अर्थात जितनी आपकी आय हो, खर्च उससे कम होना चाहिए, अधिक नहीं। कर्जदार हो कर जीवन जीना सुखदायक नहीं है।
जब व्यक्ति नौकरी करता है, या व्यापार करता है, तब उसकी आय अधिक होती है। तब वह खुले हाथ से खर्च करता है, ठीक है। परंतु जब वह रिटायर अर्थात सेवानिवृत्त हो जाता है, या व्यापार छोड़ देता है, तब वृद्धावस्था में उसकी आय कम हो जाती है। तब उसे अपना खर्च भी घटा देना चाहिए, अन्यथा वह दुखी होगा।
जब आय अधिक हो, तब तो व्यक्ति खाना पीना सैर सपाटा देश विदेश की यात्रा मँहगे कपड़े मँहगी कारें और एक दूसरे को गिफ्ट देना इत्यादि सब कुछ मँहगा मँहगा कर सकता है, और बहुत से लोग करते भी हैं। परन्तु जब व्यक्ति व्यापार छोड़ देता है या नौकरी से सेवानिवृत्त हो जाता है, तब उसकी आय उतनी नहीं रहती। तब वे पुराने शौक छोड़ देने चाहिएँ, या कम कर देने चाहिएँ। तब थोड़ी वस्तुओं में ही अपना काम चलाना चाहिए। व्यक्ति यदि पहले 6 चीजें खरीदता था। तो अब 3 चीजें खरीदे। पहले मँहगी कार कपड़े आदि खरीदता था, तो अब मध्यम स्तर की कार कपड़े आदि खरीदे। क्योंकि पेंशन, वेतन से लगभग आधा ही होता है। इसलिए जितनी उसकी आय हो, पेंशन इत्यादि हो, उसको ध्यान में रखकर, उससे कुछ कम ही खर्च करे।
धन कमाते समय, व्यापार नौकरी करते समय, युवा अवस्था में ही इतना धन धीरे-धीरे जमा कर लेना चाहिए, कि रिटायरमेंट के बाद, आप के सारे खर्चे आप स्वयं उठा सकें, और दूसरों के आगे हाथ न फैलाना पड़े। वृद्धावस्था में अपने बच्चों से भी धन की आशा न रखें। व्यापार नौकरी आदि करते समय रातों रात अमीर या करोड़पति अरबपति बनने का सपना भी नहीं देखना चाहिए। क्योंकि इसके लिए फिर व्यक्ति को बहुत प्रकार के गलत तरीके अपनाने पड़ते हैं, जो कि असंवैधानिक होते हैं। ऐसा धन कमाने से कोई लाभ नहीं है। न तो उससे शांति मिलती है, और न ही परिवार में सुख समृद्धि होती है। इसलिए व्यापार नौकरी आदि करते समय अपना काम पूरी ईमानदारी, बुद्धिमत्ता और मेहनत से करना चाहिए। जिससे कि धीरे-धीरे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त धन का संग्रह हो जाए। अर्थात अपना वर्तमान जीवन (युवावस्था) भी ठीक आनंदपूर्वक चलता रहे, और अपने भविष्य (वृद्धावस्था) के लिए भी चार पैसे जमा हो जाएँ।
भविष्य में वृद्धावस्था में जो ख़र्चे करने पड़ेंगे, उनमें से कुछ उदाहरण -- भोजन वस्त्र मकान का खर्च। नौकर का खर्च। कुछ महंगाई भी बढ़ेगी। बच्चों को भी समय समय पर कुछ गिफ्ट देना पड़ेगा। मित्रों के साथ भी कहीं घूमना फिरना खाना पीना उठना बैठना होगा, हो सकता है मित्रों के साथ विदेश यात्राओं का भी कार्यक्रम बन जाए। उसके लिए भी पैसा चाहिए। वृद्धावस्था में रोगी भी हो सकते हैं। टीबी हृदयाघात कैंसर आदि जैसा कोई बड़ा रोग भी हो सकता है। उसका ऑपरेशन आदि भी कराना पड़ सकता है। ऑपरेशन के बाद नियमित रूप से आजीवन दवाइयां भी खानी पड़ सकती हैं। कुछ वैदिक धर्म प्रचार में दान भी देना होगा, इत्यादि। इन सब खर्चों के लिए युवावस्था में ही धीरे-धीरे धन जमा कर लेना चाहिए।
अतः ईमानदारी से धन कमाएँ। और यथाशक्ति कुछ भविष्य के लिए भी जमा करें। वृद्धावस्था में सीमित आय या पेंशन के अनुसार ही खर्च करें। वृद्धावस्था में मन की शांति के लिए ईश्वर का ध्यान, स्वाध्याय और वैदिक विद्वानों का सत्संग अवश्य करें। शारीरिक स्वास्थ्य के लिए व्यायाम अवश्य करें। यही आपके लिए सुखकारी होगा।