सुषमा स्वराज का सेक्यूलरमण्डन और पासपोर्ट में घुसा प्रेत
आज तक ऐसा नही हुआ है कि मेरा राष्ट्रवादी चरित्र की प्रतिक्रिया, भारत की मोदी जी की सरकार और उसके मंत्रियों को लेकर विपरीत रही हो। लेकिन सुषमा स्वराज को लेकर जो विवाद हुआ है उस को लेकर मेरा प्रथम दिन से एक निश्चित विरोध का मत रहा है।
मैंने सादिया अनस उर्फ तन्वी सेठ के पासपोर्ट को लेकर जो सुषमा स्वराज व उनके आदेशों पर उनके विदेश मंत्रालय ने जो कृत किये थे, जो उसका विरोध किया था, वह नरेंद्र मोदी जी की सरकार का विरोध नही किया था बल्कि एक मानसिकता का विरोध किया था जो मूल तत्व में मोदी जी के धर्म, धर्मनिर्पेक्षिता और भारत के दर्शन से, स्पष्ट रूप से विमुख थी।
जब मैंने पास्पोर्ट कांड पर अपना आक्रोश व्यक्त किया था तब मेरे लिये इसके पीछे मूल में दो कारण थे। पहला यह कि जिस मंत्री को इस कारण से प्रसिद्धि प्राप्त हुई है कि वो लोगो की समस्या ट्विटर पर सुलझा देती है, वो लोगो द्वारा ट्विटर पर ही एक हुई गलती की तरफ ध्यान दिलाने के बाद भी मौन रही थी लेकिन उनका मंत्रालय सब निर्णय लेता रहा था और दूसरा यह कि हर ऐरे गैरे पाकिस्तानी को ट्वीट पर ही वीसा दिलाने वाली और पाकिस्तान में 'वीसा माता' से ख्याति प्राप्त मंत्री जी को यह कैसे आभास नही था कि आज के संवेदनशील वातावरण में एक धर्मांतरित हुई महिला, जो नाम भी बदल चुका है, उसको असामान्य तरीके से पासपोर्ट दिलवाना क्या भारत के सुरक्षा तंत्र से समझौता नही है?
क्या सुषमा जी दाऊद सईद गिलानी को भूल चुकी है? यदि वे भारत की विदेशमंत्री के होते हुये इस नाम को भूल चुकी है तो निसंदेह 2008 के मुम्बई अटैक को भी भूल चुकी होंगी। सुषमा जी ही सिर्फ नही बल्कि बाकी सभी लोगो को केवल डेविड कोलमैन हेडली याद होगा क्योंकि उसका पासपोर्ट इसी नाम से था। वह दाऊद सईद गिलानी है यह किसी को पता नही चला था, जब तक कि वो आतंकवादी गतिविधियों में पकड़ा नही गया था। डेविड हेडली ने अपनी दाऊद गिलानी की पहचान को छुपा लिया था और ठीक वैसे ही तन्वी सेठ ने भी सादिया अनस की पहचान छुपा ली है और उसके लिये उत्तरदायी सिर्फ भारत की विदेशमंत्री सुषमा स्वराज है।
अब प्रश्न यह उठता है कि जो पासपोर्ट प्रकरण में हुआ उसमे सुषमा स्वराज की भूमिका सिर्फ एक दुर्घटना थी या फिर यह उनकी सिक्युलर प्रतिमा को स्वछंद रूप से स्थापित किये जाने का एक उद्गम था?
मैं, सुषमा स्वराज की भूमिका को एक संयोग या दुर्घटना बिल्कुल नही मानता हूँ। जो मंत्री 24 घण्टे अपना मंत्रालय ट्विटर से चलाता हो और वो मंत्री, उनकी ही पार्टी व विचारधारा के समर्थको द्वारा उचित बवंडर को नेपथ्य में डाल कर यह ट्वीट करता है कि वो 6 दिनों से भारत के बाहर थी, यह न सिर्फ हास्यपद है बल्कि सामान्य राष्ट्रवादि के सामान्य आईक्यू का अनादर है।
मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि जो भी तन्वी सेठ उर्फ सादिया अनस के पासपोर्ट को लेकर हुआ है वह मात्र एक संयोग था। यदि वह नही होता तो आगामी दिवसों में कुछ और घटित होता, जिसको कांग्रेसी इकोसिस्टम से पोषित व वामपंथियों से प्रभावित, भारत की मीडिया, मुस्लिमो के विक्टम कार्ड के कथानक को स्थापित करते और सुषमा स्वराज को सिक्युलर छवि प्रदान करने में आज की ही भूमिका का निर्वाह करती। सुषमा स्वराज तब भी, सब कुछ नेपथ्य में धकेल कर, अपने दंभ में अपनी सिक्युलर छवि को, अलग से प्रतिस्थापित कराती। यहां सुषमा स्वराज यह भूल गयी है कि जिस मीडिया के माध्यम से वे मुस्लिम वर्ग को अपने सिक्युलर होने व विपक्षी दलों द्वारा बीजेपी के नेतृत्व स्वीकार्य किये जाने के लिये मेहनत कर रही है जो पिछले 16 वर्षों से सुषमा स्वराज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को, अपशब्दों से लेकर घृणात्मक टिप्पणियों से प्रहार करती रही है। सुषमा जी को जहां अपने प्रधानमंत्री से प्रेरणा लेना चाहिये थी वही उसके विपरीत जाकर, तन्वी उर्व सादिया अनस मामले में स्थिति स्पष्ट करने के बजाय उन्होंने राष्ट्रवादियो को ट्विटर पर ब्लॉक करके, इस पूरे प्रकरण में अपनी भूमिका सन्दिग्ध कर दी है।
मुझ को ऐसा प्रतीत होता है कि सुषमा स्वराज जी, 2018 में 2013 की पुनरावृत्ति कर रही है। मुझको वह साल विशेष रूप से याद है जब गोवा के अधिवेशन में बीजेपी की तरफ से नरेंद्र मोदी जी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित होना था तब आडवाणी जी के कैम्प की तरफ से मोदी जी के नाम को रोकने की अगुवाई उन्होंने की थी और पूरी दुनिया ने सुषमा जी का उखड़ा हुआ चेहरा देखा था। मुझ को यह भी याद है कि बीजेपी के 2013/14 का 180 प्लस गैंग की मुखिया सुषमा जी ही थी। इसमे कोई शक नही है कि सुषमा स्वराज नरेंद्र मोदी जी को कभी भी स्वीकार नही कर पाई थी और इसी लिये विदिशा, जहां से वे लोकसभा का चुनाव लड़ रही थी वहां, मोदी जी की रैली करवाने से न सिर्फ मना कर दिया था बल्कि वहां लगे पोस्टर में आडवाणी जी प्रमुखता से थे और मोदी जी का चेहरा गायब था।
यही कारण था कि बीजेपी और खास तौर से आडवाणी जी के दबाव के बाद भी मोदी जी सुषमा स्वराज को ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स वाले मंत्रालय नही देना चाहते थे। जब वह सब जगह से हार गई थी तब आडवाणी जी की सलाह पर जीवन मे पहली बार आरएसएस के झंडेवाला पार्क स्थित कार्यालय जाकर विनती की थी और उसी के बाद उन्हें विदेश मंत्रालय मिला था। सुषमा स्वराज का दम्भ फिर से सर चढ़ बोल रहा है और यह उनके ट्विटर प्रोफाइल देख कर पता चलता है। आप वहां देखेंगे कि भारत की विदेश मंत्री, अपने प्रधानमंत्री, जिसे दुनिया फॉलो करती है, उसे फॉलो नही करती है।
इस पूरे प्रकरण में सुषमा स्वराज जी ने पूरे विश्व मे भारत और उसकी सरकार की छवि को धक्का लगाया है। विश्व का हर एक राष्ट्र, उसके विदेश मंत्रालय और राजदूत, भारत के विदेश मंत्री के ट्विटर को फॉलो करते है और वो देख रहे है कि भारत की विदेश मंत्री ने गम्भीरता को त्याग कर छिछली हो गयी है और सरकार के विरोधियों को अपना प्रशंसक बना रही है। यह एक संकेत है कि सुषमा स्वराज, नरेंद्र मोदी जी की सरकार से हट कर 2018 के परिणामो में विपक्ष व सेक्युलर वर्ग की सहायता से बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री की दावेदारी रखने का मन बना चुकी है और जो सब हुआ है वह इसी की पृष्ठभूमि है।
अब आते है इस पूरे पासपोर्ट केस में आये नये मोड़ पर जो सुषमा स्वराज की विवादित भूमिका को और कलुषता दे रहा है। तन्वी सेठ के नाम से 1 घण्टे में पासपोर्ट देने के बाद पुलिस वेरिफिकेशन की रिपोर्ट, जिसमें यह कहा गया था कि तन्वी बताये पते पर न रह कर नोयडा रहती है, उसको यह कह कर खारिज किया गया था कि 1 जून 2018 में लांच किए गए पासपोर्ट एप्प में नियम बदला हुआ है और कोई भी कहीं से पासपोर्ट का आवेदन कर सकता है। तब हम ऐसे विरोध करने वालो ने यह कहा था कि तन्वी सेठ प्रकरण में सुषमा स्वराज अपनी भूमिका के विवादित हो जाने पर, एक अधूरे एप्प को सहारा बनाया है और सिक्युलर दिखने की जिद्द में एक गलत तरीके से बनवाये गये पासपोर्ट की सही ठहराया है।
आगे का समाचार यह है तन्वी उर्फ सादिया अनस पासपोर्ट प्रकरण के कुछ ही दिनों बाद सुषमा स्वराज के विदेश मंत्रालय ने पुलिस वेरिफिकेशन में, आवेदक का पते पर रहना फिर से अनिवार्य कर दिया है। 29 जून 2018 को लिये गये इस निर्णय को लखनऊ पासपोर्ट आफिस में 9 जुलाई 2018 से लागू कर दिया गया है।
अब क्या सुषमा स्वराज राष्ट्र को बतायेगी की यदि वह सही थी तो सुरक्षा के द्रष्टिकोण से अतिमहत्वपूर्ण, पुलिस वेरफिकेशन में फिर यह प्रवधान हफ्ते भर में क्यों वापस लाया गया की आवेदक का पते पर रहना अनिवार्य है? मुझको पूरी उम्मीद है उनकी इस पर चुप्पी रहेगी क्योंकि इस प्रवधान का वापस आना यह सिद्ध करता है कि पासपोर्ट आवेदन के लिये बनाया एप्प न सिर्फ उपयोग के लायक नही था बल्कि उसकी सुरक्षा को देख कर कोई भी समीक्षा नही कराई गई थी। इस एप्प के होने को सिर्फ सुषमा स्वराज ने एक गलत ढंग से बनाये गये पासपोर्ट को सही ठहराया है। मेरा मानना है कि पासपोर्ट कांड के बाद, गृह मंत्रालय व प्रधानमंत्री कार्यालय ने इसका संज्ञान लिया और पुलिस वेरिफिकेशन के पूर्व के प्रवधान को फिर से जोड़ने को कहा है। इसलिये यह निर्णय 29 जून 2018 को ले लिया गया था लेकिन उसको रीजनल पासपोर्ट कार्यालयों मे तुरन्त न लागू कर के कुछ दिनों बाद अब 9 जुलाई 2018 से लागू किया गया है।
यहां अपनी इतनी लंबी बात यह कह कर खत्म करूँगा की सुषमा स्वराज का जो सपना 2013/14 में पूरा नही हो पाया था वह उस बार भी पूरा नही होगा। नरेंद्र मोदी जी 2019 में फिर से प्रधानमंत्री बनेंगे लेकिन सुषमा स्वराज को शायद मार्गदर्शक मंडल में भी प्रतिष्ठित होने का अवसर नही मिलेगा।
#mgsc# #इंडिया# #जोगेन्द्र चौधरी#
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