भारत का एक ऐसा किला जिसे आजतक कोई जीत नहीं पाया।
आज हम भरतपुर के उस अजेय दुर्ग के बारे में चर्चा कर रहे हैं, जो अपनी फौलादी दृढ़ता के नाम से लोहागढ़ के नाम से इतिहास में अमर है।
राजस्थान को मरुस्थालों का राजा कहा जाता है। यहां अनेक ऐसे स्थान हैं जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इन्हीं में से एक है लौहगढ़ का किला। इस किले का निर्माण 18वीं शताब्दी के आरंभ में जाट शासक महाराजा सूरजमल ने करवाया था। महाराजा सूरजमल ने ही भरतपुर रियासत बसाई थी। उन्होंने एक ऐसे किले की कल्पना की जो बेहद मजबूत हो और कम पैसे में तैयार हो जाए। उस समय तोपों तथा बारूद का प्रचलन अत्यधिक था, इसलिए इस किले को बनाने में एक विशेष युक्ति का प्रयोग किया गया जिससे की बारूद के गोले भी दीवार पर बेअसर रहे।
भरतपुर का ऐतिहासिक नगर महाराजा सूरजमल सिंह ने 18वी शताब्दी में बसाया था। किवदंती हैं कि भगवान राम के छोटे भाई भरत के नाम पर इस नगर का नाम "भरतपुर" पड़ा, परन्तु इतिहासकारों का कहना यह है कि यहाँ की जमीन बहुत नीची थी और उस पर मिट्टी का भरत भरा गया था, इसी कारण इसका नाम "भरतपुर" पड़ा। किले के एक कोने पर जवाहर बुर्ज है, जिसे जाट महाराज द्वारा दिल्ली पर किये गए हमले और उसकी विजय की स्मारक स्वरूप सन् 1865 में बनाया गया था। दूसरे कोने पर एक बुर्ज है –– फतह बुर्ज जो सन् 1905 में अंग्रेजी के सेना के छक्के छुड़ाने और परास्त करने की यादगार है।
दिल्ली से उखाड़कर लाया गया किले का दरवाजा
इस किले के दरवाजे की अपनी अलग खासियत है। अष्टधातु के जो दरवाजे अलाउद्दीन खिलजी पद्मिनी के चित्तौड़ से छीन कर ले गया था उसे भरतपुर के राजा महाराज जवाहर सिंह दिल्ली से उखाड़ कर ले आए। उसे इस किले में लगवाया। किले के बारे में रोचक बात यह भी है कि इसमें कहीं भी लोहे का एक अंश नहीं लगा।
यह राजस्थान के अन्य किलों के जितना विशाल नहीं है, लेकिन फिर भी इस किले को अजेय माना जाता है। इस किले की एक और खास बात यह है कि किले के चारों ओर मिट्टी के गारे की मोटी दीवार है। निर्माण के समय पहले किले की चौड़ी मजबूत पत्थर की ऊंची दीवार बनाई गयी। इन पर तोपो के गोलो का असर नहीं हो इसके लिये इन दीवारों के चारो ओर सैकड़ों फुट चौड़ी कच्ची मिट्टी की दीवार बनाई गयी और नीचे गहरी और चौड़ी खाई बना कर उसमे पानी भरा गया। ऐसे में पानी को पार कर सपाट दीवार पर चढ़ना तो मुश्किल ही नही अस्म्भव था। यही वजह है कि इस किले पर आक्रमण करना सहज नहीं था। क्योंकि तोप से निकले हुए गोले गारे की दीवार में धंस जाते और उनकी आग शांत हो जाती थी। ऐसी असंख्य गोले दागने के बावजूद इस किले की पत्थर की दीवार ज्यों की त्यों सुरक्षित बनी रही है।
इसलिए दुश्मन इस किले के अंदर कभी प्रवेश नहीं कर सके। राजस्थान का इतिहास लिखने वाले अंग्रेज इतिहासकार जेम्स टाड के अनुसार इस किले की सबसे बड़ी खासियत है कि इसकी दीवारें जो मिट्टी से बनी हुई हैं। इसके बावजूद इस किले को फतह करना लोहे के चने चबाने से कम नहीं था।
इस फौलादी किले को राजस्थान का पूर्व सिंहद्वार भी कहा जाता है। यहां जाट राजाओं की हुकूमत थी जो अपनी दृढ़ता के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने इस किले को सुरक्षा प्रदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ा। दूसरी तरफ अंग्रेजों ने इस किले को अपने साम्राज्य में लेने के लिए 13 बार हमले किए। अंग्रेजी सेना तोप से गोले उगलती जा रही थी और वह गोले भरतपुर की मिट्टी के उस किले के पेट में समाते जा रहे थे। 13 आक्रमणों में एक बार भी वो इस किले को भेद न सके। ऐसा कहा जाता है कि अंग्रेजों की सेना बार-बार हारने से हताश हो गई तो वहां से भाग गई। ये भी कहावत है कि भरतपुर के जाटों की वीरता के आगे अंग्रेजों की एक न चली।
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