शोक से मुक्ति 1 Freedom from grief 1
परम् श्रद्धेय स्वामी रामसुखदासजी की गीता दर्पण से साभार-
मनुष्य द्वारा किये जाने वाले शोक का प्रमुख आधार उसके द्वारा किये जाने वाले कर्मो का परिणाम होता हैं।
मनुष्य न तो कर्मो के आरम्भ के बिना सिद्धि को प्राप्त कर पाता हैं, ओर न ही कर्मो के त्याग से सिद्धि को प्राप्त कर पाता हैं।
सृष्टि के चलने का कारण ही प्रत्येक जीव का आपने अपने कर्मो में लगे रहना हैं। यदि प्रत्येक जीव अपना कर्म करना छोड़ दे तो सृष्टि चक्र गड़बड़ा जाएगा, अर्थात हमारे द्वारा किये जाने वाले कर्म और उनका परिणाम पूर्व निर्धारित हैं।
मनुष्य इस बात को या तो जानता नही, या जानते हुए भी मानना चाहता नही, और परिणाम को लेकर परेशान हो उठता हैं।
जबकि यदि प्रत्येक जीव ये मानकर कर्म करे कि मैं सृष्टि चक्र द्वारा निर्धारित कर्म कर रहा हूं और परिणाम भी उसके लिए जो आवश्यक हैं, प्राप्त हो रहे हैं, तो सारी परेशानी वही पर खत्म हो जाती है।
मेरे द्वारा होने वाले कार्य प्रकृति द्वारा पूर्व निर्धारित हैं, जिनके करने से प्राप्त होने वाले परिणाम प्रत्येक के लिए लाभप्रद हैं, व्यक्तिशः मेरे लिए भले ही कम अथवा नही के बराबर लाभप्रद हो, पर सभी के लिए बेहतर हैं।
ये सोच हमारे शोक को समाप्त करने के लिए पर्याप्त हैं।
आवश्यकता इस बात की हैं, कि मनुष्य अपने पंचतत्व शरीर की आवश्यकताओं से बाहर निकल कर अपने को सम्पूर्ण सृष्टि का आवश्यक भाग समझे और कर्तव्य निर्वहन करे।
धरती पर अवतरित प्रत्येक महापुरुष ने लोक कल्याण के लिए अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया। भगवान ने भी जब जब सृष्टि पर मानव शरीर धारण किया, सर्वशक्तिमान होते हुए भी लोक कल्याण के लिए कर्म कर कर्तव्य निर्वहन किया।
अपने कर्तव्य का निष्कामभाव पूर्वक पालन करने वाला मनुष्य कभी शोकाकुल नही होता और मर जाने पर उसका कल्याण होता हैं।
The main basis of man's grief is the result of his deeds.
Humans neither achieve accomplishment without the beginning of karma, neither can they achieve accomplishment with renunciation of karma.
The reason behind the creation of the universe is that you have to be engaged in every activity of your life. If every creature leaves his karma, then the Srishti chakra will be disturbed, that is the deeds done by us and their result is predetermined.
Humans do not even know this thing, or do not even want to believe, and get upset about the result.
Whereas if every creature follows the action that I am doing according to the actions laid down by Srishti Chakra and the consequences are necessary for him, then all the trouble ends up on the same.
The work that is done by me is predetermined by nature, whose results are beneficial for each, personally beneficial for me, even if not less or less, but better for everyone.
These thoughts are enough to end our grief.
The necessity is that, after coming out of the necessities of the human body, its Panchtatta body understands its essential part of the whole universe and discharges duty.
Every great man depicted on earth discharged his duties for public welfare. Even when God held the human body on creation, God, despite being omnipotent, discharged his duty by performing karma for public welfare.
A person who does not disobey his duty is ever mournful and if he dies, his welfare not happens.
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
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आपका~indianculture1
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