'कोई विकल्प नहीं है तुम्हारे अपनेपन से भरे स्पर्श का| लेकिन खुले में धीमी .........

in #poem3 years ago



'कोई विकल्प नहीं है तुम्हारे अपनेपन से भरे स्पर्श का| लेकिन खुले में धीमी हवा को छूते हुए बीत ही जाती हैं बसंत की शामें|