Nari sakti
पिता :- कन्यादान नहीं करूंगा जाओ ,
मैं नहीं मानता इसे ,
क्योंकि मेरी बेटी कोई चीज़ नहीं ,जिसको दान में दे दूँ ;
मैं बांधता हूँ बेटी तुम्हें एक पवित्र बंधन में ,
पति के साथ मिलकर निभाना तुम ,
मैं तुम्हें अलविदा नहीं कह रहा ,
आज से तुम्हारे दो घर ,जब जी चाहे आना तुम ,
जहाँ जा रही हो ,खूब प्यार बरसाना तुम ,
सब को अपना बनाना तुम ,पर कभी भी
न मर मर के जीना ,न जी जी के मरना तुम ,
तुम अन्नपूर्णा , शक्ति , रति सब तुम ,
ज़िंदगी को भरपूर जीना तुम ,
न तुम बेचारी , न अबला ,
खुद को असहाय कभी न समझना तुम ,
मैं दान नहीं कर रहा तुम्हें ,
मोहब्बत के एक और बंधन में बाँध रहा हूँ ,
उसे बखूबी निभाना तुम .................
एक नयी सोच एक नयी पहलसभी बेटियां के लिए