A Man Was Hanged

in #religion7 years ago

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A man was hanged.
On the rainy day, the big storm
And the water is falling from the smoky sky.
And where the prison was to be hanged,
Travel a five-mile walk on foot and walk around.
So the soldier and Captain and the executioner and all the people,
Judge, walks past the forest

The guy hummed the song.
After all, the magistrate did not.
He said that brother,
And we will take all the troubles,
Water is falling, electricity is shining,
In the cold, they are frozen, absolutely,
Flu will go home, dengue fever will go home
That will be nostalgia - what will not happen!
And from the top you are singing!

He said singing, why do not I sing!
Because I just have to go there,
You will also have to come back.
Remember, my children are heavy!
We went and ended. Think your

What is kept in life here? The prisoner said:
What kind of happiness we were getting
For which we cry? He was lying in chains,
Were in the dungeon,

At least under the open sky are there!
And then fear what,
When death is coming, then what is fear?
Now we do not have fear of dengue, no fear of flu,
There is no fear of anyone.
Now on this occasion, we sing the song.

Which is the part of life,
She seems to be working very hard-
It has been explained to you that
He's doing a lot of rare work!
He is not doing any rare work,
Only weak, cowardly, poorly.

I am telling you
Life is not to run away from the challenges - live-
In the market, in the shop; While working,
Wife, child, husband .... And this is the way to live here
Like Lotus In Water

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एक आदमी को फांसी की सजा हुई।
बरसात के दिन, बड़ा अंधड़—तूफान
और पानी गिर रहा है धुआंधार आकाश से।
और जेलखाने से जहां फांसी लगनी थी,
कोई पांच मील का रास्ता पैदल चल कर सफर करना।
तो सिपाही और कप्तान और जल्लाद और सारे लोग,
जज, लेकर चले जंगल की तरफ और

वह आदमी गीत गुनगुनाता चला।
आखिर मजिस्ट्रेट से न रहा गया।
उसने कहा कि सुन भाई,
और सब तकलीफ हम सह लेंगे,
पानी गिर रहा है, बिजली चमक रही है,
ठिठुर रहे हैं ठंड में, भीग गए हैं बिलकुल,
घर जाकर फ्लू चढ़ेगा कि डेंगू बुखार चढ़ेगा
कि एनच्छंजा हो जाएगा— क्या होगा पता नहीं!
और ऊपर से तू गाना गा रहा है!

उसने कहा गाना मैं क्यों न गाऊं!
क्योंकि मुझे तो सिर्फ वहीं तक जाना है,
तुम्हें लौट कर भी आना पड़ेगा।
याद रखो बच्चों मेरा पलड़ा भारी है!
हम तो गए और खत्म हुए।अपनी सोचो।

यहां जिंदगी में रखा क्या है?उस कैदी ने कहा :
हमें ऐसा कौन सा सुख मिल रहा था
जिसके लिए हम रोएं?अरे जंजीरों में पड़े थे,
कालकोठरी में पड़े थे,

कम से कम खुले आकाश के नीचे तो हैं!
और फिर डर क्या,
जब मौत ही आ रही तो अब डर क्या?
अब न हमें डेंगू का डर है, न फ्लू का डर है,
किसी का डर ही नहीं है।
अब इस मौके पर तो हम गाना गा लें।

जो भाग रहा है जिंदगी से,
वह लगता है बहुत कठिन काम कर रहा है—
ऐसा तुम्हें समझाया गया है कि
वह बड़ा दुर्लभ काम कर रहा है!
वह कोई दुर्लभ काम नहीं कर रहा है,
सिर्फ कमजोर है, कायर है, भीरु है।

मैं तुमसे कह रहा हूं
जिंदगी की चुनौतियों से भागना नहीं है—जीना है—
यहीं बाजार में, दुकान में;काम करते हुए,
पत्नी, बच्चे, पति…।और यहीं इस ढंग से जीना है
जैसे जल में कमल।
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मन ही पूजा मन ही धूप(संत रैदास-वाणी), प्रवचन-८, ओशो