जीना उसका जीना है

in #sanjaysinha2 years ago

किसी को जीवन देना बड़ी बात होती है। मुझे एक सच्ची घटना याद आ रही है। हालांकि मैं इस सच्ची घटना में पात्र का नाम चाह कर भी नहीं लिख पाऊंगा, और तब तक नहीं लिख पाऊंगा, जब तक कि पात्र खुद सामने आकर अपना परिचय न दे। मैं किसी की निजता का बहुत सम्मान करता हूं। पर संजय सिन्हा आज ये कहानी सिर्फ इसलिए सुना रहे हैं क्योंकि बिहार के पूर्व मुख्य मंत्री लालू यादव की बेटी रोहिणी का नाम लगातार चर्चा में है कि उन्होंने अपनी किडनी देकर पिता की जान बचाई।
बड़ी बात है ये।
संजय सिन्हा आज जिस परिजन की कहानी आपसे साझा करने जा रहे हैं, उनकी कहानी दिल को विचलित करने वाली है। हमारे एक परिचित की दोनों किडनियां खराब हो गईं थीं। डॉक्टर ने किडनी ट्रांसप्लांट उनकी ज़िंदगी के लिए एक मात्र उपाय बताया। बहुत विचार-मंथन के बाद बहन की किडनी भाई से मैच की। घर वालों ने बहन को राजी किया, भाई की ज़िंदगी के लिए। बहन बहुत मुश्किल से तैयार हुई, किडनी देने के लिए।
आपरेशन की तैयारी पूरी हो गई थी। जिस दिन बहन की किडनी निकाल कर भाई को लगाई जाने वाली थी, अचानक बहन आपरेशन रूम से गायब हो गई। काफी ढूंढा गया तो पता चला कि बहन भाग गई है। उसने ऐन वक्त पर अपनी किडनी देने से इंकार कर दिया। हर साल भाई की कलाई पर राखी बांध कर अपनी रक्षा की गुहार लगाने वाली, हर भाई-दूज पर भाई की लंबी उम्र की कामना करने वाली बहन ने ठीक आपरेशन के वक्त भाई को मरनासन छोड़ दिया।
पर कहते हैं कि प्रेम कभी हारता नहीं।
एक दूसरी महिला- जिसका उस आदमी के साथ सिर्फ अग्नि के सामने साथ जीने, साथ मरने का वादा था, आगे आई। उसके दो छोटे-छोटे बच्चे थे। बहुत छोटे। महिला उस आदमी की रक्त संबंधी नहीं थी। बस वादों की रिश्तेदार थी। “डॉक्टर साहब एक बार मेरी किडनी भी मैच करके देख लीजिए। मैं खून की रिश्तेदार नहीं, पर प्रेम की रिश्तेदार हूं। वादों की रिश्तेदार हूं। जीवन-मरन की रिश्तेदार हूं। पत्नी हूं। प्लीज़।”
डॉक्टर ने तुरंत चेक किया। सब कुछ मैच।
और हो गया आपरेशन।
ये दुर्भाग्य रहा कि पति फिर भी बहुत दिन नहीं रहे इस संसार में। पर बहन का किया और पत्नी का किया तो रह गया संसार में। किडनी देने वाली पत्नी एकदम फिट हैं। कई साल बीत चुके हैं।
पत्नी की ये कहानी जब मैंने पहली बार सुनी थी तो मेरा मन श्रद्धा से उनके आगे झुक गया था।
ये ठीक है कि कहानी लालू यादव और उनकी बेटी की है इसलिए सुर्खियों में है। लेकिन आप ये भी सोचिए कि लालू यादव का आपरेशन सिंगापुर में हुआ है। लालू यादव के पास पैसों की कमी नहीं। वो चाहते तो अमर सिंह की तरह चुपचाप किडनी ट्रांसप्लांट करा लेते, डोनर का पता ही नहीं चलता। ये सब संभव होता है पैसों के बूते। नियमानुसार किडनी सिर्फ परिवार वाले दे सकते हैं, आप खरीद नहीं सकते हैं। पर विदेश जाकर कराए गए आपरेशन में क्या संभव नहीं। डोनर साथ जाता है, पूरा मामला सेट हो जाता है।
लालू यादव और रोहिणी की कहानी सामने आने से मुझे बहुत खुशी है। बहुत से लोगों के लिए दोनों प्रेरणास्रोत बनेंगे।
मेडिकल सच्चाई यही है कि एक स्वस्थ व्यक्ति आजीवन एक किडनी पर स्वस्थ रह सकता है। बहुत से लोग एक किडनी, एक फेफड़ा के साथ पैदा होते हैं और अपनी पूरी उम्र ठीक से जीते हैं।
आगे बताने से कहीं भूल न जाऊं इसलिए यहीं बता दूं कि सही ज्ञान ही हमारी सभी समस्याओं का अंतिम समाधान है।
जो ज्ञान से दूर, वो नादान हैं।
अब बात फिर किडनी डोनेशन की- मैं कितनी कहानियां सुनाऊं? बात सिर्फ बेटी की नहीं। मैं ऐसी मां को भी जानता हूं जिन्होंने अपनी बेटी के लिए अपनी किडनी दी। आप उन्हें जानते हैं। मां उर्मिला श्रीवास्तव की बेटी की दोनों किडनी खराब हो गई थी। मां ने अपनी किडनी उसे दी। ये दुर्भाग्य रहा कि बेटी फिर भी नहीं बची। वो अलग कहानी है। पर मां हैं। उन्हें सुकून है उन्होंने कोई कसर नही छोड़ी जीवन बचाने में।
मेरी ममेरी बहन ने अपनी छोटी बहन की किडनी खराब होने पर अपनी किडनी उसे देकर उसकी जान बचाई।
पर वहीं मेरे मामा की किडनी जब खराब हुई तो उन्होंने किसी से किडनी दान लेने से मना कर दिया। मामा मध्य प्रदेश कैडर के आईपीएस अधिकारी थे और डॉक्टरों के लाख कहने के बाद भी किडनी डोनेशन लेने से उन्होंने मना कर दिया कि अपनी ज़िंदगी बचाने के लिए किसी और से उसकी ज़िंदगी क्यों उधार लें?
मामा नहीं रहे। डॉक्टरों ने समय बता दिया था कि आपरेशन नहीं होने पर इतना ही समय है।
वो एक अलग सोच है। मामा संत थे। जीवन-मृत्यु की सोच से ऊपर। उन्होंने कभी किसी से कुछ नहीं लिया। आखिर की एक सांस भी नहीं।
पर मैं ऐसी बहनों को भी जानता हूं जिनमें एक बहन की किडनी खराब होने पर सात बहनें, सारा दिन दीदी, दीदी कहने वाली बहनें, ऐन वक्त पर किडनी देने से मुकर गईं। किसी के पति ने मना कर दिया। किसी के बेटे ने। जब मेरी जानकारी में उनकी कहानी आई थी तो हैरान रह गया था उनके रक्त संबंध पर। बाद में बूढ़ी मां आगे आई थी। सारी बेटियों ने मां की किडनी फिट करवा दी, “मां, तुम तो जी चुकी हो ज़िंदगी।”
मैं तो उन लोगों को भी सलाम करता हूं जो सिर्फ अपने परिवार का पेट पालने के लिए चोरी से अपना गुर्दा बेच देते हैं। चाहे ये गैरकानूनी ही हो, पर उनके जज्बे को देखिए कि वो अपने परिवार का पेट पालने के लिए गुर्दा बेचते हैं। गुर्दा बेचना अपराध है, पर परिवार के प्रति जिम्मेदारी का अहसास?
अमर सिंह की किडनी सिंगापुर में बदली थी। किसी डोनर का नाम किसी को नहीं पता। सुषमा स्वराज की किडनी दिल्ली में बदली थी। डोनर?
ऐसे में लालू यादव की बेटी सामने आकर पिता संग फोटो खिंचवा कर अंग दान को बढ़ावा देने के लिए शानदार प्रेरणा स्रोत बनी हैं। मुझे लालू यादव की राजनीति से कभी प्रेम नहीं रहा। पर रोहिणी ने जो किया, उसकी जितनी तारीफ करूं, कम है। किडनी देने से बढ़ कर उनका सार्वजनिक रूप से सामने आना बड़ी बात है। मैं लालू यादव की सभी संतानों में रोहिणी को सबसे भाग्यशाली मानता हूं।
किसी का जीवन बचाने से बढ़ कर और क्या?
बहुत से लोग ये कहते मिल जाएंगे कि लालू यादव की उम्र हो चुकी थी, ऐसे में उन्हें अपनी बेटी की किडनी नहीं लेनी चाहिए थी। ध्यान दीजिएगा मेरी इस बात पर कि लालू यादव के लिए किडनी की कमी नहीं होनी थी। अगर उन्हें दस-बीस किडनी की ज़रूरत पड़ती तो उसका जुगाड़ आसानी से हो सकता था। अमर सिंह की तरह ही सही। पर बेटी ने बाप को जीवन दिया, मेरे लिए इससे बढ़ कर खुशी की बात नहीं।
जो जीवन किसी अपने के काम न आए, उस जीवन का क्या? खा-पी कर खिसक जाना जीवन नहीं होता।
जीना उसका जीना है, जो औरों को जीवन देता है।
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