पब्लिक खुश है

in #sanjaysinha2 years ago

मुझे याद है कि मैंने आपको ये कहानी कुछ ही समय पहले सुनाई थी। आज फिर सुना रहा हूं तो इसका अर्थ ये बिल्कुल नहीं कि संजय सिन्हा के पास कहानियां खत्म हो गई हैं। बात सिर्फ इतनी है कि कल से मेरे दिमाग में हुक्मरान घूम रहे हैं।
आखिर क्या हो गया संजय सिन्हा को, जो हुक्मरानों के बारे में सोच कर दुबले हुए जा रहे हैं?
आज कहानी मैं पाकिस्तानी हुक्मरानों की सुनाऊंगा। मैं चिंतित हूं वहां के हालात पर। क्या हो गया है वहां के लोगों की समझ को?
एक बात पहले समझ लीजिए कि मै भले चिंतित होऊं, वहां की पब्लिक चिंतित नहीं हैं।
चलिए आज आप मुझी से पहले सुनी पाक कथा फिर सुन लीजिए। अच्छा लगता है पड़ोसियों की कथा सुनना।
बहुत पहले एक पाकिस्तानी सीरियल देखते हुए हम तब हैरान रह गए थे, जब वहां की सरकार को ये कहते सुना कि शिक्षा का बजट अधिक रखने की ज़रूरत नहीं, लोगों को स्कूल वगैरह के बारे में सोचने ही नहीं देना है।
मुझे सीरियल का नाम नहीं पता है, लेकिन कहानी पाकिस्तान की आजादी के समय की थी। भारत और पाकिस्तान एक साथ आजाद हुए थे। कहानी के मुताबिक वहां के हुक्मरान जब आला अफसरों से ये कह रहे थे कि शिक्षा के बारे में अधिक बात नहीं करनी है तो अफसर हैरान होकर मंत्री जी की ओर देखते हैं। मंत्री जी कहते हैं ऐसे क्या देख रहे हो? अगर तुम इन लोगों को शिक्षित करने में लग जाओगे तो कल ये तुमसे सवाल पर सवाल पूछेंगे। और जो सवाल पूछते हैं, वो तुम्हारी कुर्सी के लिए घातक होते हैं। आराम से कुर्सी पर काबिज रहो। तुम अफसरी करो, मैं नेतागीरी करता हूं। मौज काटो, रूल करो।
ये कहानी थी। मैं और मेरी पत्नी दोनों अक्सर इस कहानी पर चर्चा करते हैं। सोचते हैं कि सच में नेता कैसे होते हैं? अपनी सल्तनत बचाए रखने के लिए किस हद तक सोचते हैं। वो अपने थोड़े से फायदे के लिए देश का डीएनए तक बदल देने से नहीं चूकते।
लोग ठीक सोच नहीं पाएं, लोग काबिल न हो पाएं सारी कोशिश इसी की होती है। बहुत आसान होता है किसी पर शासन करने के लिए कि उसकी सोच का दायरा ही सीमित कर दो। उसे उलझा दो रोज़ की रोटी के फेर में, ताकि वो कुछ और सोच ही नहीं पाए। जो शिक्षित होगा, वो सोचेगा। जो सोचेगा वो सही गलत में अंतर करना सीख जाएगा। लोग इस अंतर को न समझ पाएं इसके लिए ज़रूरी होता है ज्ञान की गंगा को रोक देना।
मुझे पाकिस्तानी सच का नहीं पता। संजय सिन्हा नहीं जानते कि वहां शिक्षा का स्तर क्या है। पर इतना समझते हैं कि अंग्रेजों ने शिक्षा को रोजगार से जोड़ा ही इसलिए ताकि हम शिक्षा का अर्थ सिर्फ नौकरी पाने का एक जुगाड़ समझ लें। मतलब जिन्हें नौकरी नहीं करनी, उन्हें शिक्षित होने की ज़रूरत ही नहीं। यही कारण है कि बड़े-बड़े फिल्मी सितारे, बिजनेस घराने शिक्षा पर ध्यान नहीं देते। उनके लिए स्कूल-कॉलेज जाने का कोई मतलब ही नहीं होता। वो खुलेआम स्वीकार करते हैं कि उन्हें इसकी ज़रूरत ही नहीं थी।
बहुत पहले अपने यहां के एक फिल्मी हीरो ने मुझसे कहा था कि वो दस्तखत करने से अधिक कुछ लिखना नहीं जानते।
हमारी बातचीत देश की व्यवस्था पर हो रही थी तो उन्होंने कहा था कि उनके पास ये सब सोचने का समय ही नहीं। उन्हें तो बस अपनी कमाई से मतलब है।
कल अपने एक साथी से मैंने कहा कि आजकल खबरों की दुनिया बदल गई है तो वो हंसने लगे। कहने लगे कि संजय जी, इन सब बातों को क्यों सोचना? नौकरी कीजिए, मस्त रहिए। हर महीने सैलरी मिलती रहे बस यही दुआ कीजिए।
ओह! मैं भी कहां से कहां पहुंच जाता हूं। बात पाकिस्तान की हो रही है। एक सीरियल की कहानी की हो रही है। इसमें इतना क्या सोचना? मैं कौन-सा पाकिस्तान जा कर देखा हूं कि वहां शिक्षा का आलम क्या है। बात ये है कि 1947 में जब पाकिस्तान आज़ाद हुआ था, तभी वहां के हुक्मरानों ने ऐसी व्यवस्था कर दी थी कि अब कोई अधिक शिक्षित न हो। अब लोग उतना ही पढ़ें, जितने से हुक्मरानों का काम चल जाए। भले आपको लगे कि तालिबानी अभी लड़कियों के स्कूल जाने पर पहरा लगाने लगे है, पर असल में ये रोक तो बहुत पहले लग गई थी। आज़ादी के तुरंत बाद से ही। सरकार ने सारे बजट पर चर्चा की थी, शिक्षा को छोड़ कर।
शिक्षित आदमी अच्छा नहीं होता। वो सल्तनत से सवाल करता है। सल्तनत को ये पसंद नहीं।
सल्तनत का मानना है कि प्रजा की चिंता करने के लिए वो हैं। प्रजा को क्या चाहिए होता है? दो वक्त की रोटी? रोटी मिलती रहेगी।
आप सही गलत न सोच पाएं इसी में उनकी भलाई है। आप वही सोचें जो वो चाहते हैं। आप वही कहें जो वो कहलवाना चाहते हैं। आप इससे अधिक के लिए बने ही नहीं थे। आखिर वो राजा थे, आप प्रजा।
राजा राजा होता है। प्रजा प्रजा होती है।
अपने मन के सभी द्वार को बंद करके जीने की कोशिश करने से बेहतर भला क्या हो सकता है?
ये गाना भले प्रेमी-प्रेमिका के लिए लिखा गया होगा, पर मुझे तो पाकिस्तान के शासक और वहां की जनता के लिए ये ठीक लगता है।
“जो तुमको हो पसंद, वही बात करेंगे, तुम दिन को अगर रात कहो,रात कहेंगे।”
वैसे पाकिस्तान का जो भी हो, पर वहां के लोगों की मैं दिल से तारीफ करना चाहता हूं कि वो हर हाल में खुश हैं। खुश रहना जानते हैं। सीरियल और कहानी का क्या, लोग तो खुश हैं न!
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