Peas in a pod

in #story6 years ago

Logopit_1535348852799.jpgलगभग सभी अनुपम को एक स्मार्ट बच्चा मानते थे। वह था भी। पढ़ाई में होशियार, खेलों में बेहतर और हाजिर जवाब। सिर्फ मम्मी-पापा और छोटी बहन कुमकुम को ही यह रहस्य मालूम था कि रात होते ही उसकी पमपम बज जाती है। अनुपम को अंधेरे से बहुत डर लगता था। डर भी इतना कि अंधेरे कमरे में अकेले जाने की बात तो छोड़िए, मद्धिम रोशनी से भी उसे घबराहट होने लगती थी। उसके कारण लंबे समय से वे लोग कोई फिल्म सिनेमा हॉल में नहीं देख पाए थे। मम्मी-पापा के बेडरूम और कुमकुम के कमरे के बीच अनुपम का सुंदर, हवादार कमरा था। फिर भी रात को सोने के लिए वह कुमकुम के कमरे में घुस आता था। कुमकुम को भैया से बड़ी चिढ़ छूटती, क्योंकि अनुपम सारी रात एक बड़ा-सा बल्ब नाइट लैंप की तरह जलाए रखता। अनुपम को भी अपनी इस कमजोरी पर बड़ी बौखलाहट होती। वह खुद समझ नहीं पाता था कि अंधेरे में ऐसा क्या है जिसका उसे डर लगा रहता है। राक्षस... शेर...? नहीं। वह जानता था कि यह सब केवल कहानियों में या जंगल में ही पाए जाते हैं। 'मैं नहीं जानता', 'मुझसे कुछ मत पूछो' यही उसका उत्तर रहता। शनिवार की शाम दफ्तर से घर लौटते समय पापा एक टेलीस्कोप प्रोजेक्ट ले आए। रविवार की पूरी सुबह और दोपहर अनुपम और पापा ने साथ बैठकर डिब्बा भर कलपुर्जों से एक पूरी टेलीस्कोप बना ली। अनुपम को इसमें काफी मजा आ रहा था। उसे अंदाज नहीं था कि रात होते ही यह टेलीस्कोप उसकी परेशानी का सबब बन जाएगी। इसका ध्यान तो उसे तब आया, जब रात को खाना खाने के बाद सब लोग तारे देखने के लिए छत पर जाने को तैयार हो गए। इसका मतलब कुम्मी को भी इस योजना का पता था। अनुपम को गुस्सा तो आया, लेकिन अंधेरे का डर उससे भी बड़ा निकला। पापा कंधों से ठेलकर उसे छत पर ले गए। पापा का सोचना था कि चन्द्रमा, तारे और नक्षत्रों की तिलस्मी दुनिया देखकर अनुपम उनमें खो जाएगा और उसका भय भी जाता रहेगा। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। अनुपम की आंखें आकाश के नजारों से ज्यादा आसपास के अंधेरे को टटोल रही थीं। हवा से आकाश नीम के ऊंचे पेड़ डोल रहे थे। पीपल की पत्तियां लगातार हंसे जा रही थीं। 'पापा यह सरसराहट कैसी है?' अनुपम ने पूछा। 'हो सकता है कोई गिरगिट नींद नहीं आने के कारण चहलकदमी कर रहा हो' पापा ने बड़ी आसानी से कह दिया। आधा घंटा होने को आया, नीचे लौट चलने के लिए अनुपम की छटपटाहट लगातार बढ़ती ही जा रही थी। अब तो पापा को भी अपने डरपोक बेटे पर गुस्सा आ गया। गनीमत थी कि उन्होंने अनुपम को एक चपत नहीं लगाई। अच्छी-खासी हवाखोरी की किरकिरी हो गई थी। स्नेह सम्मेलन का मौसम था। वातावरण में मौज-मजे की खुनक थी। पढ़ाई पर जोर कम था। एक दोपहर क्लास टीचर कक्षा में आई और मेज पर ही बैठ गई। बिना बताए बच्चे जान गए कि आज कुछ खास बात है। एक रेडियो जॉकी के अंदाज में हवा में हाथ लहरा कर टीचर ने घोषणा की कि हम लोग पिकनिक पर जा रहे हैं। पिकनिक पूरे दो दिन और दो रातों की होगी। हर किसी को पिकनिक में आना जरूरी है। बच्चे तो खुशी से उछल पड़े। किलकारियां भरने लगे और मारे उत्तेजना के मेज थपथपाने लगे। इधर अनुपम के पेट में मारे डर के मरोड़े उठने लगे। दो दिन तो ठीक है, घर से दूर एक रात भी वह कैसे निकाल पाएगा? रात को खाने की मेज पर अनुपम का लटका हुआ मुंह देखकर पापा ने उसका कारण पूछा। पिकनिक की बात के साथ बिना रुके अनुपम ने यह भी बता दिया कि दो दिनों तक मटरगश्ती करने के बजाए वह घर में रहकर पढ़ाई करना चाहता है। इसलिए पापा उसके लिए डॉक्टर के प्रमाण पत्र की व्यवस्था कर दे। पापा सब जानते थे कि पिकनिक छोड़कर पमपम को पढ़ाई क्यों सूझ रही है। उन्होंने कड़े शब्दों में कह दिया कि अनुपम को जाना ही होगा। पढ़ाई होते रहेगी। दोस्तों के साथ मिल-जुलकर रहने के मौके बार-बार नहीं मिलते। पिकनिक पर जाओगे तो दो बातें सीखकर ही आओगे। अब तो दिन के उजाले में भी खाने-खेलने से अनुपम का मन उचट गया। जंगल के अंधेरे में जो होगा सो होगा, सहपाठियों के सामने पोल खुल जाएगी सो अलग। बड़ा स्मार्ट बना फिरता था बच्चू। आखिर पिकनिक का दिन आ पहुंचा। बच्चे खुशी-खुशी बस में सवार हुए। गाते-हंसते, शोर मचाते सब चल पड़े। अनुपम अपनी सीट पर सहमा-दुबका बैठा रहा। झमझमा फॉल्स पहुंचकर उसने देखा कि जंगल के बीच में खुले हिस्से में 30-35 छोटे-छोटे तंबू लगे हैं। यहीं उन सबको रहना-सोना था। अनुपम अपने जॅकेट के अंदर हनुमान चालीसा की पोथी भींचे हुए बस से नीचे उतरा। टीचर ने बताया कि हर तंबू में दो बच्चे रहेंगे। अपना-अपना पार्टनर चुन लो। इस बार अनुपम के सामने कोई दुविधा नहीं थी। उसने लपककर नाहर को जा पकड़ा। सच तो उसका नाम अजीत था और वह स्कूल का जूडो चैंपियन था। दोस्तों ने उसका नाम अजीत उर्फ लायन रख छोड़ा था। हिन्दी के शिक्षक ने उसका नाम बदलकर नाहर कर दिया था। अनुपम का पार्टनर बनने के लिए नाहर ने हां तो कह दिया था, लेकिन उसके चेहरे पर परेशानी के भाव थे। अनुपम खुश था कि जूडो चैंपियन के साथ रहते अंधेरे से निकलकर कोई उसका बिगाड़ नहीं सकता था। रात ठंडी थी। खाना खाने के बाद दोस्तों की हंसी-ठिठौली में शामिल हुए बिना ही अनुपम और नाहर बिस्तर में आ दुबके। कंदील बुझाए बगैर ही दोनों ने अपने-अपने स्लीपिंग बैग की झिप चढ़ा ली। अनुपम इंतजार करता रहा कि नाहर अब रोशनी बंद करेगा, तब रोशनी बंद करेगा। तभी एक खरखरी फुसफुसाहट से अनुपम चौंक उठा। फिर उसे ध्यान में आया कि नाहर उससे कुछ पूछ रहा है। 'क्या तुम्हें अंधेरे से डर लगता है?' अनुपम को अपना भेद खुलता लगा। अरे, यह क्या देख रहा था वह... नाहर खुद थरथर कांप रहा था। नाहर ने बताया कि 'उसे अंधेरे से बहुत डर लगता है।' और एक आश्चर्य की बात हुई, अनुपम ने खुद को यह कहते सुना कि अंधेरे से क्या डरना? अब वह स्लीपिंग बैग परे हटाकर उठ बैठा। यह तो अद्भुत था। अनुपम को अपने आप पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। उसने नाहर को थपथपाकर कहा कि दोस्त, तुम तो एकदम पोंगे निकले। डरो मत। मैं तुम्हारे साथ हूं। तुम मेरा हाथ थाम लो और बेफिक्र होकर सो जाओ। अनुपम का हाथ थाम कर नाहर निश्चिंत हो गया। 'लेकिन तुम मुस्कुरा क्यों रहे हो? कहीं यह बात सबको बता तो नहीं दोगे?' नाहर ने पूछा। 'तुम्हारी यह हालत देखकर मुझे ऐसा ही एक पगला लड़का याद आ गया' अनुपम ने दूर अंधेरे में ताकते हुए कहा, 'लेकिन वह पुरानी बात है।'

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